MCD: हुआ खुलासा..इस मामले में सरासर झूठ बोल रही है मेयर शैली ऑबरॉय ..

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आज दिल्ली नगर निगम की महापौर शैली ओबरॉय द्वारा की गई बड़ी घोषणा पर दिल्ली बीजेपी ने महापौर को झूठा बताया है। 

दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने कहा है कि आम आदमी पार्टी के नेता मंत्री सौरभ भारद्वाज और मेयर डॉ. शैली ओबेरॉय म्यूनिसिपल वैल्यूएशन कमेटी 5 की रिपोर्ट जिसने व्यापारियों और करदाताओं की कुछ अन्य श्रेणियों जैसे कि खाली प्लॉट रखने वालों या पेइंग गेस्ट आवास चलाने वालों के लिए देय संपत्ति कर में थोड़ी राहत दी है के कार्यान्वयन का झूठा श्रय लेने की कोशिश कर रहे हैं।

दिल्ली बीजेपी प्रवक्ता ने कहा है कि एम.वी.सी. 5 की रिपोर्ट पर प्राथमिक चर्चा तब हुई थी जब बीजेपी सत्ता में थी और उसके बाद तत्कालीन विशेष अधिकारी श्री अश्विनी कुमार द्वारा उपराज्यपाल श्री विनय कुमार सक्सेना के निर्देश इसे स्वीकार और अनुमोदित किया गया था जिस वक्त दिल्ली नगर निगम भंग था।

मंत्री भारद्वाज और मेयर ओबेरॉय का एम.सी.डी. हाउस भंग होने के समय दिल्ली के उपराज्यपाल प्रशासक द्वारा कर दाता नागरिकों को दी गई राहत का श्रेय लेने की कोशिश करना अजीब और आश्चर्यजनक है।

दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता ने मंत्री भारद्वाज और मेयर ओबेरॉय को एक बैठक का एक रिकॉर्ड दिखाने के लिए चुनौती दी है, जहां 22 फरवरी 2023 को प्रभावी रूप से गठित एमसीडी हाउस ने एम.वी.सी. की 5 रिपोर्ट पर चर्चा या विचार-विमर्श किया है।

यह नवंबर 2022 में विशेष अधिकारी द्वारा पारित किया गया था और 19 अप्रैल 2023 से एमसीडी के आयुक्त के अनुमोदन के तहत टैक्स एमसीडी के निर्धारक और कलेक्टर द्वारा लागू किया गया है।

*दिल्ली भाजपा प्रवक्ता ने कहा है कि यह खेदजनक है कि एमसीडी मेयर चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी के मुद्दे पर भी आम आदमी पार्टी नेता लगातार भ्रामक बयान दे रहे हैं।* मैंने कल भी उद्धृत किया था और आज फिर मंत्री भारद्वाज और मेयर डॉ. शैली ओबेरॉय को डीएमसी अधिनियम 2022 की धारा 77 का अध्ययन करने के लिए कहता हूँ जो स्पष्ट रूप से कहती है कि केवल प्रशासक जो कि उपराज्यपाल हैं, मेयर चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने के लिए अधिकृत है।

इसके अलावा कहीं भी अधिनियम में यह नहीं लिखा है कि वरिष्ठतम पार्षद को पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया जाना है, अधिनियम में स्पष्ट है कि प्रशासक किसी भी पार्षद को पीठासीन अधिकारी नियुक्त कर सकता है। वरिष्ठता का मुद्दा अधिनियम में नहीं है बल्कि अभ्यास का विषय है।

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