MCD बड़ा सवाल :गिरती आर्थिक स्थिति को देखते हुए आखिर क्यों नहीं करते आयुक्त अपने बजट भाषणों में 13000 करोड़ का जिक्र?

इधर उत्तरी व पूर्वी दिल्ली नगर निगम के कर्मचारियों के बीच सैलरी व पेंशन न मिलने की वजह से हाहाकार मचा हुआ है और उधर नगर निगम के भाजपा नेता लगातार यही चिल्लाते नज़र आ रहे हैं कि ये वजह दिल्ली सरकार द्वारा उत्पन्न की गई है। क्योंकि दिल्ली सरकार नगर निगमों को लेकर लगातार सौतेला व्यवहार अपना रही है।

दिल्ली सरकार ने नगर निगमों के न केवल फण्ड में कटौती की है बल्कि जो देना है वो भी टाइम से नहीं देती हैं। साथ ही 13000 करोड़ रुपये जो दिल्ली सरकार से एमसीडी को लेना है वो भी दबाकर बैठी है।13000 करोड़ का ज़िक्र बार बार भाजपा के बड़े व छोटे नेताओं की ज़ुबान पर लगातार बना है।यही वजह है कि ये मुद्दा लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। 

इस मुद्दे पर सवाल उठाते हुए विपक्ष के नेता विकास गोयल का कहना है कि यदि ऐसा है तो कभी भी 13000 करोड़ का जिक्र कोर्ट में क्यों नहीं करते? साथ ही आजतक इस मुद्दे को लेकर निगम के आयुक्त ने कोई ब्यान क्यों नहीं दिया? आयुक्त ने कभी भी इसबात का ज़िक्र अपने बजट भाषणों में क्यों नहीं किया?

इस सवाल का जवाब देते हुए मौजूदा नार्थ एमसीडी स्थाई समिति चेयरमैन जोगीराम जैन ने कहा कि संवैधानिक पद पर रहते हुए इस मुद्दे पर आयुक्त का बोलना तर्क संगत नहीं है।

जोगीराम के इस बयान पर पलटवार करते हुए पूर्व नेता विपक्ष राकेश कुमार ने कहा कि स्थाई समिति के अध्यक्ष द्वारा इस तरह का बेतुका जवाब यही दर्शाता है कि उन्हें केवल झूठ बोलना है।यदि उनका हक बनता है तो आजतक 13000 करोड़ का ज़िक्र कोर्ट में क्यों नहीं किया गया?

तो वहीं जोगीराम जैन के बयान पर उन्हें घेरते हुए आप नेता मुकेश गोयल ने कहा कि ऐसा बयान देकर अध्यक्ष केवल अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं । जबतक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति किसी भी ज़रूरी विषय पर अपनी बात नहीं रख देता तब तक उस विषय का कोई महत्व  नहीं माना जाता है।ऐसे में निगमायुक्त द्वारा कभी भी 13000 करोड़ का ज़िक्र नहीं होना यही दर्शाता है कि ऐसा कोई बकाया है ही नहीं जिसकी भाजपा नेता बार बार ज़िक्र करते हैं।

उधर नार्थ एमसीडी पूर्व महापौर जयप्रकाश ने कहा कि आयुक्त द्वारा 13000 करोड़ का इसलिए ज़िक्र नहीं किया जाता क्योंकि जब दिल्ली सरकार द्वारा वित्त आयोग की सिफारिशें मानी ही नहीं गईं तो उसपर आयुक्त कैसे अपनी बात रख सकते हैं। 

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